सांझ ढलते ही,
दोस्तों की मेहफ़िल छटते ही,
फिर मुझे मेरा अक्स आज याद आ गया,
बीता हर लम्हा फिर दोहराह गया !!!
वक़्त के उस मोड़ पे,
उस पाक मोहब्बत का,
वो फिर सिला दे गया ,
आबो हवा में फिर वो खुशनुमा एहसास दे गया!!
एहसास का पर्दा जब हटा ,
वो मीठा दर्द फिर नासूर बनके कुछ कह गया ,
शीशा दर्द से टुटके यूँ बिखर गया !
टूटे टुकडो को समेटने का भी वो हक़ न दे गया,
एक फूँख से अरमानो का किला यूँ ही ढह गया,
समंदर की आती जाती लहरों मे खो गया!!
क्यूँ तोड़ गया वो हर सपना ,
जिसमे उसकी मर्ज़ी भी कही छुपी थी!
कहा खो गया वो अपना जिसने मेरी ना में भी हाँ पढ़ी थी!
क्यूँ मुकर गया वो उस एहसास से
जो उसे भी हर पल होता था!
कहाँ गया वो दिल का हिस्सा
जो मेरे लिए भी कभी रोता था!
कहाँ गए वो एहसास
जो बिना कहे ही सब कुछ कह जाते थे!
कहाँ गयी वो याद
जो बिन आये ही आंसू दे जाते थे!
कहाँ गई वो रातें जब
जब हम चाँद को यूँ ही देखा करते थे
वो बात जो चुपके से बोला करते थे !!
सब भूल गया ,
यूँ रूठ गया ,
छोड़ के मुह मोड़ के,
वो अकेला छोड़ गया !!
मैं पूछती रह गई बस इन फ़िज़ाओं से
"क्या थी मेरी खता
की मेरा अक्स ही मुझसे जुदा हो गया "!!