नंगे पैरो से चलते चलते ,
मैं उनके पास पहुँच जाती थी,
उनकी गोदी में बैठके ,
खूब मिठाइयाँ खाती थी!
खाने के शौक़ीन वो भी थे,
और मैं तो थी ही बचपन से चटोरी ,
सब के मना करने पे भी,
करती थी उनके लिए गुड की चोरी!!
प्यार था उनका अजब निराला,
रोज़ लुना पर घुमाकर लाते थे,
कभी कभी घंटो शाम को ,
कंधे पे बैठाके दूर सैर कराते थे !!
घूमाते थे, पढ़ाते थे ,
हर नखरे मेरे उठाते थे,
जब भी जिद्द कर बैठती सितारों की
चाँद वो ले आते थे!!
माँ बाप से बढ़कर
वो साथ हमेशा देते थे,
अनकही बातों को झट से पढ़ लेते थे.....
मैं सोती थी उनके पास
और वो प्यार से सहलाते थे,
मेरी छोटी सी बीमारी पे भी
परेशान बड़ा वो हो जाते थे .....
डांट मैं खाती थी हर बात पे,
पर हर सुबह मुझे मना लेते थे ,
चाहे मैं उनकी सबसे प्यारी चीज़ क्यूँ न तोड़ देती ,
तब भी मुझपे हंसके ही रह जाते थे....
सब कहते थे उनको बड़ा बिगाड़ रखा है मुझे ,
आगे अकेली कुछ नहीं कर पायेगी ,
पर इस बात पे भी प्यार से मेरी तरफ देख
मुस्कुरा कर कहते थे ,
"मेरी बेटी है सब सीख जाएगी!!"
उनकी निराली सी टोपी से मैं सर्दियों में खूब खेला करती थी ,
वो धूप सेकते थे और मैं उनकी बातें सुना करती थी!
पर ये सिलसिला यूँही नहीं चलता रहा ,
न जाने समय ने क्या खेल खेला ,
और सब थम सा गया !!
मैं उस दिन भी सबसे कह रही थी,
की झूठ है सब कुछ
ऐसा थोड़े ही होता है ,
जानती थी की सब समाप्त हो चूका
और यही रीत का लेखा है !!
मैं अड़ जाती भगवान से
अगर मेरे बस मे यह सब होता ,
लौटा देती उन यमदूतों को
और पूछती भगवान से कैसे कर रहे हो यह धोखा ????
सब बीत गया पर यादें याद आती है,
याद आती है हर वो सुबह ,
जब सैर से लौटके,
अपनी अनोखी ऐनक से अखबार की सुर्खियों से रूबरू होते थे,
फिर चाय की चुस्की लेकर सबको उठाते थे ,
एक ही बात रोज़ होती थी की उठ जाओ कब तक बिस्तर तोड़ते रहोगे,
देरी हो जाएगी जाने में नाश्ता कब फिर करोगे??
उनकी एक आवाज़ से सब घर वालो की नींदें उड़ जाती थी ,
आलस छोड़ काम पे जाने की तैयारी चालू हो जाती थी!!
वो दिन वो पल बस अब यादों में संझो कर रख सकते है ,
काश कोई वक़्त की ऐसे गाड़ी होती जिससे हम पीछे भी मूड सकते है,
कुछ ऐसा होता तो मै वापिस छोटी बन जाती ,
जी भर के उनके साथ रहती और वही की होकर रह जाती !!!!
मैं उनके पास पहुँच जाती थी,
उनकी गोदी में बैठके ,
खूब मिठाइयाँ खाती थी!
खाने के शौक़ीन वो भी थे,
और मैं तो थी ही बचपन से चटोरी ,
सब के मना करने पे भी,
करती थी उनके लिए गुड की चोरी!!
प्यार था उनका अजब निराला,
रोज़ लुना पर घुमाकर लाते थे,
कभी कभी घंटो शाम को ,
कंधे पे बैठाके दूर सैर कराते थे !!
घूमाते थे, पढ़ाते थे ,
हर नखरे मेरे उठाते थे,
जब भी जिद्द कर बैठती सितारों की
चाँद वो ले आते थे!!
माँ बाप से बढ़कर
वो साथ हमेशा देते थे,
अनकही बातों को झट से पढ़ लेते थे.....
मैं सोती थी उनके पास
और वो प्यार से सहलाते थे,
मेरी छोटी सी बीमारी पे भी
परेशान बड़ा वो हो जाते थे .....
डांट मैं खाती थी हर बात पे,
पर हर सुबह मुझे मना लेते थे ,
चाहे मैं उनकी सबसे प्यारी चीज़ क्यूँ न तोड़ देती ,
तब भी मुझपे हंसके ही रह जाते थे....
सब कहते थे उनको बड़ा बिगाड़ रखा है मुझे ,
आगे अकेली कुछ नहीं कर पायेगी ,
पर इस बात पे भी प्यार से मेरी तरफ देख
मुस्कुरा कर कहते थे ,
"मेरी बेटी है सब सीख जाएगी!!"
उनकी निराली सी टोपी से मैं सर्दियों में खूब खेला करती थी ,
वो धूप सेकते थे और मैं उनकी बातें सुना करती थी!
पर ये सिलसिला यूँही नहीं चलता रहा ,
न जाने समय ने क्या खेल खेला ,
और सब थम सा गया !!
मैं उस दिन भी सबसे कह रही थी,
की झूठ है सब कुछ
ऐसा थोड़े ही होता है ,
जानती थी की सब समाप्त हो चूका
और यही रीत का लेखा है !!
मैं अड़ जाती भगवान से
अगर मेरे बस मे यह सब होता ,
लौटा देती उन यमदूतों को
और पूछती भगवान से कैसे कर रहे हो यह धोखा ????
सब बीत गया पर यादें याद आती है,
याद आती है हर वो सुबह ,
जब सैर से लौटके,
अपनी अनोखी ऐनक से अखबार की सुर्खियों से रूबरू होते थे,
फिर चाय की चुस्की लेकर सबको उठाते थे ,
एक ही बात रोज़ होती थी की उठ जाओ कब तक बिस्तर तोड़ते रहोगे,
देरी हो जाएगी जाने में नाश्ता कब फिर करोगे??
उनकी एक आवाज़ से सब घर वालो की नींदें उड़ जाती थी ,
आलस छोड़ काम पे जाने की तैयारी चालू हो जाती थी!!
वो दिन वो पल बस अब यादों में संझो कर रख सकते है ,
काश कोई वक़्त की ऐसे गाड़ी होती जिससे हम पीछे भी मूड सकते है,
कुछ ऐसा होता तो मै वापिस छोटी बन जाती ,
जी भर के उनके साथ रहती और वही की होकर रह जाती !!!!
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