Tuesday, January 3, 2017

कोई मेरे तकिये से पूछे


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Source: Dream

कोई मेरे तकिये से पूछे मैंने तुम्हे कितना याद किआ,
सांझ सवेरा कट तो गये , पर रातों को कैसे मैंने अपना किआ | 

करवटें बदली , दिन बदले,
पर तेरी खबर न आई ,
हर आँसू का एक सहारा बन इस तकिये ने मुझे नींद दिलाई | 

सुबह उठी तो तकिया रात भर की कहानी बता जाता था ,
नम होता था यादों से फिर भी कुछ बहाना बना जाता था  | 

कोई मेरे तकिये से पूछे मैंने तुम्हे कितना याद किआ,
सांझ सवेरा कट तो गये , पर रातों को कैसे मैंने अपना किआ | 

चंचल यादें जो मन को गुदगुदाएं उसकी खिड़की हर बार बनाता था,
कोशिश करता था एक मुसकुराहट लाने की पर फिर भी मीठी यादो से आँखें नम कर जाता था |

सुबह की मदहोश चादर ओढ़े दबे पाओ उठाता था ,
मेरा तकिया मेरा साथी बनकर तुम्हरी याद दिलाता था | 

उसके इस प्यार को शुक्रिया कहना भी कम है ,
लेकिन उसके इस उपकार के मायने भी न कम है | 

कोई उससे पूछो इन यादों को कैसे उसने समझा है,
एक ना जीने वाली वस्तु ने तुमसे मिलने की चाह को आज तक कैसे संजोये रखा है | 

ये निशानी है मेरी यादो की , तन्हाइयो की और एहसासों की 
बस तुम अब इस तकिये से जानो मैंने तुम्हरा कितना इंतज़ार है किआ,
सांझ सवेरा कट तो गये , पर रातों को कैसे मैंने अपना किआ | 


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