Source: Dream
कोई मेरे तकिये से पूछे मैंने तुम्हे कितना याद किआ,
सांझ सवेरा कट तो गये , पर रातों को कैसे मैंने अपना किआ |
करवटें बदली , दिन बदले,
पर तेरी खबर न आई ,
हर आँसू का एक सहारा बन इस तकिये ने मुझे नींद दिलाई |
सुबह उठी तो तकिया रात भर की कहानी बता जाता था ,
नम होता था यादों से फिर भी कुछ बहाना बना जाता था |
कोई मेरे तकिये से पूछे मैंने तुम्हे कितना याद किआ,
सांझ सवेरा कट तो गये , पर रातों को कैसे मैंने अपना किआ |
चंचल यादें जो मन को गुदगुदाएं उसकी खिड़की हर बार बनाता था,
कोशिश करता था एक मुसकुराहट लाने की पर फिर भी मीठी यादो से आँखें नम कर जाता था |
सुबह की मदहोश चादर ओढ़े दबे पाओ उठाता था ,
मेरा तकिया मेरा साथी बनकर तुम्हरी याद दिलाता था |
उसके इस प्यार को शुक्रिया कहना भी कम है ,
लेकिन उसके इस उपकार के मायने भी न कम है |
कोई उससे पूछो इन यादों को कैसे उसने समझा है,
एक ना जीने वाली वस्तु ने तुमसे मिलने की चाह को आज तक कैसे संजोये रखा है |
ये निशानी है मेरी यादो की , तन्हाइयो की और एहसासों की
बस तुम अब इस तकिये से जानो मैंने तुम्हरा कितना इंतज़ार है किआ,
सांझ सवेरा कट तो गये , पर रातों को कैसे मैंने अपना किआ |
सांझ सवेरा कट तो गये , पर रातों को कैसे मैंने अपना किआ |
Nicely written 😇
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