Wednesday, July 25, 2012

परिवर्तन


मैं कहाँ से चली थी,
और कहाँ रुक गई,  
ये दिशा थी परिवर्तन की ,
और सब बिखरा गई !

यूँ सुबह की धूप अब खिलती नहीं ,
रात की चाँदनी यूँही सवरती नहीं ,
सब व्यस्त है बड़े अपने ही कामो में ,
कोई साथ चलने वाली परछाई अब तकदीर में नहीं !!

है दूर बड़े अपने ये रास्ते ,
एक हल्की सी मुस्कुराहट भी ठेहेरती नहीं ,
काम के जोर ने यूँ तनहा सा है कर दिया ,
पास बैठे चेहरे से भी अब रूबरू नहीं!!

बंद कमरों मे हंसी की गूंज तक नही ,
सन्नाटे में कही कैद उम्र हो गई ,
सिमटती जा रही है हर बात अब ,
लंबी बातें अब मिनटों की रह गई !

सपने बड़े थे आँखों में
हौसले का जरिया थे ,
मुश्किल से मुश्किल घडी के साथी हमेशा थे ,
मिल जाते थे किसी कोने में
चुपके से बुलाते थे ,
पर अब उन सपनो की तो आहट भी नहीं ,
दूर है कही जहाँ आवाज़ पहुँचाने का जरिया ही नहीं!!

लगता है जैसे बरसो से नींद भरी है
पूरी कभी ये होती ही नहीं ,
गुज़र जाता है वक़्त कैसे पता भी नहीं ,
रात लम्बी अब लगती ही नहीं!

सुबह कब होगी अब इसका इंतज़ार नहीं ,
चाहे न हो ये भी सही !
ये परिवर्तन मुझे गवारा नहीं
कुछ तो अपना हो ये तो बेगानी सी है कड़ी !

इस दिशा में मुझे अब जाना नहीं,
जो अपना नहीं उसे अपना अब बनाना नहीं ,
बहुत हुआ अब आँख मिचोली का ये खेल ,
सिमेट कर सब लौट जाना है सही
ये परिवर्तन अब मुझे गवारा नहीं !!
ये परिवर्तन अब मुझे गवारा नहीं !!