कल बैठे बैठे ऐसा लगा 
समय भाग गया और पता भी न चला 
बच्चे होने का एहसास न जाने कहाँ गया 
मेरे आस पास सब कुछ क्यों धुंदला गया 
कल काम वाला आया था, पूछ रहा था इस सप्ताह क्या बनेगा 
ये कब से मैंने निर्णय लेना चालू किया?
मम्मी की जिम्मेदारी मैंने कब उठाना चालू किया 
आलू प्याज के दाम तो मुझे कभी पता न थे 
आज कैसे मैं मंडी जाके सामान लाने लगा 
कब मैं माँ बाबा के कन्धों से उतरकर उनका सहारा बन चला | 
इतनी दूर आ गया हूँ लगता है कई बार,
घर के खाने का स्वाद भी याद न रहा | 
जब थके हारे शाम को कई बार देरी से लौटता हूँ 
कोई मेरे इंतज़ार मे भूखा घर पे नहीं मिलता 
कई बार तो रसोइया के हाथ के बने खाने मे नमक का स्वाद भी नहीं होता | 
जब कभी खिड़की से बाहर झांकता हूँ 
आँगन मे बचपन भी दिखाई नहीं पड़ता 
कितना अच्छा था बचपन , उसकी मासूमियत का एहसास अब है पता चलता | 
जब सब बड़े कहते थे , बचपन सबसे उन्मुक्त है ,
मैंने नहीं सुना 
जब सब बड़े कहते थे , अभी वक़्त है जी भर के जी लो,
मैंने नहीं सुना 
काश सुन लेता, उस समय उन बातो को 
तो आज इतना बड़ा कभी महसूस नहीं होता 
कोई बस लौटा दो वो दो पल,  फिर न कहूंगा की काश आज भी मैं बच्चा होता | 

 
 
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